आज सुबह एक पुराने मित्र का कई दिन बाद फोन आया। मैं अपने कमरे पर था। आदत के मुताबिक कमरे से बाहर जाकर बात करना चाहता था, लेकिन बाहर जाने का समय नहीं था, इसलिए अन्दर ही फोन रिसीव किया। पांच मिनट तक बात की। बाउंसिंग, प्रोलांशिएशन और पाजिंग तकनीक का इस्तेमाल किया। काल खत्म होने पर मैंने पाया कि एकदम सही तरीके से हकलाहट पर नियंत्रण रखकर बात कर पाया।
इसके पहले जब किसी का फोन आता तो कमरे से बाहर छत पर जाकर बात करता। आफिस में काल आने पर एकांत तलाशता। शायद ऐसा हकलाहट के डर से करता था। मुझे लगता कि अगर हकलाकर बात करूंगा तो सामने जो लोग सुन रहे हैं उन पर मेरी छवि खराब होगी। मैं सालों से ऐसा करता आया हूं। अकेले में हर बार फोन पर बात करना एक तरीके से मेरा कम्फोर्ट जोन बन गया था, जिसे मैंने आज तोड़ कर उससे मुक्ति पाई।
कई बार स्वयं को दिलासा देने के लिए मन ही मन यह झूठ बोलता कि आजकल मोबाइल नेटवर्क कि समस्या है। इस कारण बाहर जाकर बात करना पड़ता है। लेकिन यह जानता था कि हर बार ऐसा नहीं होता। फिर भी मैं यह करता रहा लगातार।
हकलाने के कारण हम ऐसी चीजें करते हैं जो गैर जरूरी होती हैं। हकलाहट से बचने के लिए सुरक्षित हालातों और स्थानों का खुद चयन कर लेते हैं। फोन आने पर अकेले में बात करना, हर बार एक ही दुकान से सामान खरीदना आदि।
हकलाहट को नियंत्रित करने का मूल मंत्र है ‘‘करो और सीखो’’। यानी अपने कम्फोर्ट जोन से बाहर निकलकर स्पीच पर वर्क करना।
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- अमितसिंह कुशवाह,
सतना, मध्यप्रदेश।
09300939758
- अमितसिंह कुशवाह,
सतना, मध्यप्रदेश।
09300939758
5 comments:
So very true! Keep breaking these walls..and write
g8t amit ji.....
Hi अमित
आप का जो अनुभव है, वैसा ही कुछ मेरा भी है, मै हमेश कोम्फिर्ट जोन में रहता हु, एक ही दुकान से सामान लेना अगर दुकान में कोई बच्चा है तो सामान लेने में या कुछ मांगने में कोई परेशानी नही होती।
ऐसे बहुत सी परिस्थितिया है जंहा मै कोम्फिर्ट जोन में रहता हूँ।
Thanks,
Anand
Initiative lena bahut zaroori hai. Mein bhi comfort zone se bahaar nikal kar baat karta hun to bahut accha lagta hai.
supurb...self motivation and sharing with others really a good self help. thanks for sharing.
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