टीसा की हाल ही में आयोजित हरबर्टपुर कार्यशाला पर शामिल होने के लिए मैं दिल्ली जा रहा था। रेल के एसी कोच में सफर के दौरान आगरा स्टेशन से एक विदेशी कपल सवार हुए। उनकी सीट मेरे ठीक सामने थी। मैं उनके व्यवहार का बारीकी से अध्ययन कर रहा था।
वे दोनों आपस में बातचीत करने के लिए बिल्कुल धीमी आवाज में बोलते, इतना धीमा की दूसरा पास बैठा व्यक्ति तक समझ ही न पाए। और वे लोग सिर्फ काम की जरूरी बातें ही कर रहे थे। कुछ देर बाद महिला अपर बर्थ पर लेट गई और उसका पति नीचे शांत बैठा रहा। यही नजारा मुझे दिल्ली से देहरादून तक के रेल सफर के दौरान दिखा। कुछ विदेशी यात्री मेरी सामने वाली सीट पर थे, पर बहुत ही शांत, कोई शोर नहीं। दूसरों को कोई तकलीफ नहीं हो रही थी।
इस यात्रा से मैंने शांत रहने का महत्व समझा और जाना। अक्सर हम जब घर से बाहर किसी सार्वजनिक स्थान पर होते हैं तो दूसरों की सुविधा या असुविधा का ध्यान रखना एक सामान्य शिष्टाचार होने के साथ ही हमारा कर्तव्य भी बन जाता है। वास्तव में हम भारतीय हमेशा इन सब बातों की अनदेखी करते हैं। दुर्भाग्यवश हम बिना कुछ सोचे-समझे धाराप्रवाह बोलते जाने को ही अपनी सबसे बड़ी योग्यता समझने की भूल करते हैं। हम कहीं भी हों बस बोलते चले जाओ। व्यवस्था और सरकार की आलोचना तो एक सबसे बड़ा टापिक होता है। फिर हंसी-मजाक की बातें, और अनुपयोगी बातें कुछ भी हों हमें तो सिर्फ बोलने से मतलब। किसी को आपके बोलने से क्या असुविधा या तकलीफ हो रही है इससे हमें क्या?
भारतीय दर्शन वाणी के सदुपयोग और शालीनता पर ज्यादा जोर देता है। शास़्त्रों में कहा गया है कि बोल अनमोल होते हैं, इसलिए इसका उचित उपयोग ही श्रेयस्कर है।
- अमितसिंह कुशवाह,
सतना, मध्यप्रदेश।
मो. 09300939758
4 comments:
एकदम सच! पिछले 15 सालोँ से मै एक ऐसे व्यक्ति को देख रहा हूँ जो चुप रह कर भी लोगों का महान उपकार कर रहे हैं (श्री चन्द्र स्वामी उदासीन जी..)
bilkul amit ji...silence is much better then unimportant talk...but silence have more power if we remain silent by mouth as well by mind ....
@Sachin sir, mai bhi shri chandra swami udasin ji ke darshan labh lena chahta hu. kisi workshop ke dauran agar swami ke ashram par pws ki visit rakhi jae to kaisa rahega.
ji ha amit ji right udasin ji ko mujhe bhi dekhna hai
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