May 10, 2013

हरबर्टपुर में मेरा नया दोस्त . . . दीनानाथ चैहान

अप्रैल 2013 में हरबर्टपुर पर आयोजित कार्यशाला के दौरान मुझे एक मित्र की मित्रता का सौभाग्य प्राप्त हुआ। हम लोग जिस होटल पर लंच लेते थे, वह लेहमन अस्पताल के पास ही था। उस होटल का मालिक अपना परिचय कुछ अनोखे अंदाज में देता है। अमिताभ बच्चन की फिल्म का डायलाग बोलते हुए. . . मेरा नाम. . . दीनानाथ चैहान। असल में इस सज्जन का नाम विजय वर्मा है।


कार्यशाला के तीनों दिन मैंने बडी आत्मीयता और मुस्कुराहट के साथ विजय से बातचीत की। साथ ही होटल के भोजन की तारीफ किया। आखिरी दिन शाम को जब मैं वहां से वापस लौट रहा था तो विजय ने मुझसे मेरा मोबाइल नम्बर लिया। वापस आने के बाद मैंने विजय को एक रात मोबाइल से मैसेज किया। अगली सुबह उसका फोन आया। इस तरह हमारी बातचीत और दोस्ती का सिलसिला आगे चल पड़ा।


वास्तव में मैंने कोई अलग या अनोखा काम नहीं किया है। बल्कि वही किया है जो एक सामान्य व्यक्ति को करना चाहिए। आप किसी की थोड़ी प्रशंसा करके उसे और अधिक अच्छा कार्य करने के लिए प्रेरित कर सकते हैं। लोगों की रूचियों और भावनाओं को पहचानकर और उन्हे तवज्जो देकर अपने संबंधों को मधुर बना सकते हैं। हर किसी इंसान में कुछ अच्छी आदतें, क्षमताएं, कार्य करने का तरीका या व्यवहार ऐसा होता है जिसकी तारीफ की जा सके। हमें इन्हें पहचानने की जरूरत है। और निःस्वार्थ भाव से की गई प्रशंसा संजीवनी का काम करती है। प्रशंसा सुनने वाला तो खुश होता ही है, बल्कि उसकी खुशी को देखकर हमें भी प्रसन्नता होती है। 

जरा सोचिए अपनी मां, बहन या पत्नी के बनाए भोजन की तारीफ जिस दिन आपने खुलकर की होगी उस दिन उनके चेहरे पर खुशी और संतोष के भाव जरूर दिखें होंगे। तारीफ करना सामाजीकरण (सोशलाईजेशन) की प्रक्रिया का हिस्सा है। इससे आप लोगों से और ज्यादा गहराई से जुड़ते जाते हैं।  

हकलाहट हमें सिर्फ कुछ शब्दों या वाक्यों को बोलने में होती है, लेकिन इसको लेकर हमारे चेहरे पर हमेशा बारह बजे रहें, किसी से हंसना, मुस्कुराना या बातचीत करना ही बंद कर दें, तो इससे हमारा सामाजिक दायरा और ज्यादा संकुचित होता चला जाएगा। हकलाहट हमें अच्छी कोशिशें करने से कभी नहीं रोकती, बल्कि हम खुद ही इसके डर से जीवन को बेहतर बनाने की सारी उम्मीदों को छोड़ देते हैं। 

माना कि हकलाहट बेहतर बातचीत पर थोड़ा बाधा उत्पन्न करती है, पर इससे कहीं ज्यादा नुकसानदेह हमारा नकारात्मक रवैया होता है। हम जैसा सोचते हैं, वैसे ही बन जाते हैं। हकलाने वाले व्यक्ति बनने से पहले हमें एक सामान्य व्यक्ति बनना चाहिए। एक ऐसा व्यक्ति जो सामाजिक सरोकारों और व्यक्तिगत संबंधों दोनों पर सकारात्मक प्रयास हमेशा जारी रखना चाहता हो। 

- अमितसिंह कुशवाह,
सतना, मध्यप्रदेश।
मो. 0 9 3 0 0 0 9 3 9 7 5 8 

2 comments:

Anil said...

जी हा अमित जी सही कहे
हम स्टेमर करने वाले लोग हकलाने के डर से लोगो में समाज में बातचीत करना बंद कर देते|तो हम लोग समाज से कट जाते है|
समाज से फिर से जुड़ने के लिए बढिया उपाय बताये आपने यानी जो चीज अच्छी लगे उसकी प्रशंसा जरुर करो तो लोग भी हमारे साथ रूचि से बात करेंगे |

Satyendra said...

अहा- मुझे अपने पडोसी, विजय के बारे मे कुछ नया और रोचक पता चला है..
धन्यवाद!

जम्प ब्रेक प्रयोग करने के लिए भी धन्यवाद !