September 8, 2012

मै उड़ने वाला कबूतर हूँ !


पिछले कुछ दिनों से हर माह के आखरी सप्ताह मे मेरे कुछ एक दिन राजधानी दिल्ली स्थित सेंट्रल रेलवे हॉस्पिटल मे ही गुज़रते हैं | मुझे अपने पिताजी की दवाइयाँ लेने और कुछ कागज़ी कार्यवाही के लिए वहाँ जाना होता है | हर माह की तरह इस बार भी मै सेंट्रल हॉस्पिटल के कैंसर विभाग मे अपने पिताजी का नाम पुकारे जाने का इंतजार कर रहा था | जैसा की कुछ दिनों पहले मेरे एक मित्र ने मुझसे कहा था, "कैंसर तो आजकल मानो मलेरिया हो गया है |" इस कथन का सजीव वर्णन आप आज किसी भी सरकारी अस्पताल के कैंसर विभाग मे आसानी से देख सकते हैं |  सेंट्रल रेलवे हॉस्पिटल की हालत भी इतर नही है | हर सोमवार नए मरीजों की मानो बाढ़ सी आजाती है | पिछले कुछ महीनों मे वहाँ बिताये गए वक़्त ने मुझे जीवन के कई कड़वे मगर उतने ही स्पष्ट पक्षों से अवगत कराया है जो मेरी touchscreen वाली generation ने अपनी autopilot mode पर चल रही lifestyle मे भुला दिए हैं!

पांच छः घंटों का इंतजार तो अब बड़ी आम बात लगाती है | कभी-2 तो हैरत होती है कि हम कितनी जल्दी इन चीजों के आदि हो जाते हैं | उस दिन सुबह से ही सूरज के दर्शन दुर्लभ थे | बारिश का मौसम है और मानसून इस बार हमारी राजधानी पर कुछ ज्यादा ही मेहरबां है | शायद मै अपने इंतज़ार के तीसरे घंटे मे था |  बरामदे मे टहलते-2 मेरी नज़र कोने मे बिछी एक दरी पर बैठे तीन-चार साल के बच्चे पर पड़ी | उस बच्चे के नटखट स्वरुप के बावजूद जिस चीज ने मेरा ध्यान उसकी और खीचा वो उसके चेहरे पर लगा एक मास्क था | जो की उस छोटे से चेहरे पर कुछ ज्यादा ही बड़ा लग रहा था | उसे एक नवयुवक बार-2 लिटा कर सो जाने को कहता पर जैसे ही वो कुछ दूर जाता वो लड़का फिर उठ बैठता | कुछ देर युंही मै उन दोनों के इस चूहे बिल्ली के खेल को देखता रहा | शरारत उस मास्क के अन्दर से झाँकती आँखों मे साफ़ झलक रही थी | कभी मै उस बच्चे की शरारत पर हँसता तो कभी उस नवयुवक के धैर्य की मन ही मन प्रशंसा करता | अबकी बार नवयुवक के कुछ दूर चले जाने पर उस बच्चे ने धीरे से पुकारा, "पापा!" एक मंद सी मुस्कान के साथ जैसे उसने अपने बेटे के सामने आत्मसमर्पण कर दिया और सीधा चल पड़ा |

यधपि बच्चों के प्रति अपने लगाव को मै औसत से कुछ कम ही आंकता हूँ पर न जाने क्यूँ इस बच्चे से मिलने की मेरे मन मे एक तीब्र इक्षा सी जागी | मैंने अपना ढेर सारा सामान एक कोने मै ही छोड़ा और उसके पास जाके खड़ा हो गया | पहुँचते से ही मैंने वो दो सवाल दाग दिए जो इस सभ्य समाज ने मुझे 'बच्चों से बात करने के नुस्खों' मे सिखाये हैं | १) आपका नाम क्या है? २) आप कौनसी क्लास मे पढ़ते हैं ? उस बच्चे ने मेरे सवालों को सुनकर भी अनसुना कर दिया | चूँकि अपने बचपन मे मै भी बहुत शरारती बच्चा रहा हूँ इसलिए मै बहुत अच्छे से समझता हूँ की ऐसे बच्चे से दोस्ती करने के लिए क्या नही करना चाहिए | मुझे तुरंत ही अपनी गलती का एहसास हो गया और मै कोई दूसरी तरकीब सोचने मे लग गया | तभी बहार तेज बारिश शुरू हो गयी और उसका ध्यान बरामदे मे खड़े लोगों से पास की खिड़की से बाहर हो रही बारिश पर चला गया और वो उठ खड़ा हुआ | बारिश मुझे हमेशा से बहुत पसंद है और उसकी मुश्कुराती हुई आँखें हमारे बीच की इस समानता को बखूबी जता रही थी | कुछ देर उसके साथ खड़े मैं बारिश को ही निहारता रहा तभी मेरी नज़र पास ही एक कबूतरों के झुंड पर पड़ी | मैंने अपना एक हाँथ बड़ा कर इशारा किया, "कबूतर !" वो तुरंत ही उस ओर मुड़ गया, "हाँ !"  कुछ और हिम्मत बड़ा कर अबकी बार मैंने उसके कान के पास आके कहा, "देखो ! कुछ कबूतर shade के नीचे छिप रहे हैं और कुछ आराम से छत्त पर नहा रहे हैं | " खिलखिलाते हुए वो बोला "हाँ | " कुछ देर यूँही बातचीत करते-2  मैंने पूछा "तुम्हारा नाम क्या है?" कबूतरों के झुंड पर एकटक नज़र लगाये ही उसने उत्तर दिया "सचिन (काल्पनिक नाम) |" थोड़ी देर के लिए मुझे कुछ बुरा लगा, उसके चेहरे पर लगा मास्क उसका कैंसर वार्ड मे होना मुझे पहले ही बहुत कुछ बता चुका था |  अचानक वो बोला बाकि कबूतर भी shade मे क्यों नही छुप रहे ? मैंने उत्तर दिया, "क्योंकि उन्हें बारिश मे नहाना अच्छा लगता है |" "तुम्हें बारिश मे नहाना अच्छा लगता है?" मैंने पूछा | "नहीं" उसने उत्तर दिया | शायद मैं ये उत्तर सुनने के लिए तैयार नही था और तभी अचानक न जाने कहाँ से मेरे मन में उसे जिंदगी की सीख देने का बेतुका  ख्याल आया और मै शुरू हो गया, "देखो सचिन, दो तरह के कबूतर होते हैं एक जो सारी जिंदगी बारिश से डर डर के रहते हैं, इन्हें छिपने वाले कबूतर कहते हैं और दुसरे वो जो उससे लड़ते हैं और उसका मजा लेते हैं इन्हें नहाने वाले कबूतर कहते हैं |" "अब बताओ तुम्हे बारिश मे नहाना अच्छा लगता है की नही ?" उसने फिर उत्तर दिया "नही |" "मतलब तुम छिपने वाले कबूतर हो ?" मैंने अबकी बार उसे जैसे एक ताना सा मारा | मास्क के अन्दर से उसने मुझे एक पल के लिए स्थिर होकर देखा | उस तीन-चार साल के बच्चे कि एक निगाह ने तो जैसे मेरी सांस रोक दी | क्रोध, असहमति, द्वेष और शायद मेरे अबोध होने पर हंसी भी उस एक टक देखती नज़र मे न जाने कितने ही भाव दिखलाई पड़ रहे थे | अपने चेहरे को ढके मास्क को नीचे खींचते हुए उसने मुझे उत्तर दिया, "मैं उड़ने वाला कबूतर हूँ |" मेरे पास अब उसे कहने को कुछ न था | मैं मूक हो कर वहीँ खड़ा रहा | कुछ देर बाद उसका नाम पुकारा गया | "मेरी chemo का नंबर आ गया" यह कहते हुए सचिन वहां से चला गया |

अपने हकलाने के साथ-2 कभी हमें अपनी ज़िन्दगी को भी objectively देखने कि कोशिश करनी चाहिए | कभी देखिये की कैसे हम बस इसे जिये जा रहे हैं, दौड़े जा रहे हैं | अनजाने मे इस जिंदगी से न जाने क्या-2 मांगते जा रहे हैं | पूछिए जरा खुद से की आखिर मैं क्या ढूँढ रहे हूँ, आखिर मुझे क्या चहिये है ! बाद मे सचिन के पिता से बात कर पता चला की डॉक्टर ने उसका Medical Survival Time पांच साल बताया है | किसी महान आदमी ने कहा है, "हर वो चीज जो हमारे आस पास होती रहती है, जिसे हम ज़िन्दगी कहते हैं | हम जैसे ही कुछ लोगों ने बनाई है | ये ज़रूरी नही की हम उन्ही के बनाये तरीकों को ही अपनी ज़िन्दगी भी मानलें | हम भी जीने के अपने नए तरीके बना सकते हैं जिसका लोग अनुशरण कर सकें |"

6 comments:

amit dixit said...

bahut heart touching experience hai..shukra hai ki hamari life me abhi koi time limitation to nahi hai..

Satyendra said...

बहुत सुन्दर ..
सिर उठा कर देखे तो जिन्दगी बहुत फरक लगती है..
क्रपया और लिखे..

Amitsingh Kushwah said...

अति सुन्दर प्रमेन्द्र जी.
हमारे जीवन का हर पल हमें बहुत कुछ सीखने का मौका देता है. अगर हम अपनी समस्याओं से बाहर निकल कर दुनिया को देखें तो हर पल, हर जगह, हर व्यक्ति से कुछ सीख सकते हैं. हिंदी में इतना सुन्दर पोस्ट पढ़कर मन बहुत खुश हुआ.
धन्यवाद इतना सुन्दर अनुभव साझा करने के लिए.

Anonymous said...

Really heart touching bro ..
aapke iss blog ne mujhe life mein kuch aur hatkar sochne ki shiksha di,
thanks for sharing this..:)

Ajit chaurasiya(Mania) said...

Really heart touching bro
aapke iss blog ne mujhe life mein kuch alag hatkar sochne ki shiksha di..
thanks for sharing this experiance :)

Mohit Jaiswal said...

Very Nice post...
what you write signifies what you are and what you wrote is awesome.. :) :)